
23 जुलाई, 2025 – झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार द्वारा शुरू की गई “मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना” को बेरोजगार युवाओं के लिए एक बड़ी पहल के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत 25 लाख रुपये तक का लोन और 40% तक की सब्सिडी देने का वादा किया गया है।
लेकिन जब इस योजना के पोस्टर और शर्तों को ध्यान से देखा गया, तो एक चौंकाने वाली बात सामने आई यह योजना सिर्फ अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और दिव्यांग वर्ग के लोगों के लिए ही है।
यानी अगर कोई गरीब ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ, राजपूत या किसी भी जनरल कैटेगरी का युवा इस योजना के लिए आवेदन करना चाहता है, तो वह पूरी तरह अपात्र है।
झारखंड मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना क्या है?
यह योजना राज्य सरकार की एक फ्लैगशिप योजना है, जिसका उद्देश्य राज्य के बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना है:
- ₹25 लाख तक का ऋण
- 40% या ₹5 लाख तक की सब्सिडी
- आयु सीमा: 18 से 50 वर्ष
- संचालन: झारखंड खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड (JHKVIB)
योजना में यह भी बताया गया कि अब तक 4000 से अधिक युवाओं को लाभ मिल चुका है।
क्या यह संविधान विरोधी नहीं?
योजना की पात्रता में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है:
“यह योजना केवल अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और दिव्यांगजन के लिए है।”
इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई जनरल कैटेगरी का गरीब युवा भी हो, तो वह पात्र नहीं होगा। यह न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है, बल्कि यह सकारात्मक भेदभाव की सीमाओं को भी पार करता है।

सामान्य वर्ग के गरीबों पर इसके दुष्प्रभाव
1. आर्थिक पिछड़ेपन की अनदेखी
इस योजना में जाति के आधार पर लाभ दिया जा रहा है, आय या गरीबी के आधार पर नहीं। जबकि आज के भारत में गरीबी जाति देखकर नहीं आती।
2. युवाओं में आक्रोश और विभाजन
ऐसी योजनाएं जातिगत टकराव को बढ़ावा देती हैं, खासकर तब जब योग्य व गरीब सामान्य वर्ग के युवा खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
3. कल्याणकारी नीतियों का उद्देश्य ही खो जाता है
यदि गरीबी को ही लक्ष्य नहीं बनाया गया, तो ऐसी योजनाएं सिर्फ वोटबैंक का साधन बनकर रह जाएंगी।
संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट की राय:
इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) केस में कहा गया कि आरक्षण और लाभ सीमित और न्यायसंगत होने चाहिए, और हर वर्ग के गरीबों की चिंता की जानी चाहिए।
आर्थिक आधार को भी मान्यता:
2019 में 10% EWS आरक्षण के साथ भारत सरकार ने यह माना कि गरीबी भी आरक्षण और लाभ का एक वैध आधार है। फिर झारखंड सरकार ने इसे अपनी योजनाओं में क्यों नहीं लागू किया?
मारांग गोमके छात्रवृत्ति योजना: दूसरी योजना, वही भेदभाव
झारखंड की एक और प्रमुख योजना – “मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा परदेश छात्रवृत्ति योजना” – भी केवल ST, SC, OBC और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के लिए है।
- यह योजना विदेशों में पढ़ने के लिए पूरी लागत का खर्च उठाती है।
- लेकिन इसमें भी जनरल कैटेगरी का गरीब छात्र वंचित है, चाहे वह कितना भी मेधावी क्यों न हो।

राजनीतिक फायदे की नीति या सामाजिक न्याय?
क्या झारखंड सरकार सच में सामाजिक न्याय चाहती है, या फिर ये योजनाएं सिर्फ जातिगत तुष्टीकरण का माध्यम बन गई हैं?
सवाल ये नहीं है कि अनुसूचित वर्गों को लाभ क्यों मिल रहा है।
सवाल ये है कि जनरल कैटेगरी के गरीबों को हर बार क्यों बाहर रखा जा रहा है?
गरीबी का कोई धर्म और जाति नहीं होती
झारखंड मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और विदेशी छात्रवृत्ति योजना – दोनों ही योजनाएं एक कड़वा सच उजागर करती हैं: इस राज्य में गरीबी नहीं, जाति ही प्राथमिक पात्रता है।
अगर यही नीति रही, तो हजारों मेहनती और गरीब सामान्य वर्ग के युवा हमेशा नीतियों से वंचित रह जाएंगे, चाहे वे कितने भी योग्य क्यों न हों।
👉अब समय आ गया है कि हम पूछें: “क्या गरीब होना तभी मान्य है जब आप किसी आरक्षित वर्ग से हों?”
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