सुनो संगीता की अम्मा
हमसे कुछ भी गड़बड़ हो जाता है तो कम्पनिया वाला सब हमेशा यही कहता है बिहारी हो का बे
महतारी क़सम मन तो करता है वहीं पटक के जुतिया दें लेकिन फिर सोचते हैं परिवार कैसे चलेगा आख़िर वापस लौट के बिहार भी तो नहीं जा सकते हैं उहाँ कूछो है ही नहीं करने को
बिहार का रहने वाला हर व्यक्ति चाहे वो देश के किसी कोने में किसी भी कंपनी में किसी भी फैक्ट्री में कही भी बैठा हो ये उसके मन की उसके दिल की बात है
आज पहली बार कौनो आया है जो ये नहीं कह रहा है की थाना से लेकर परखंड तक सब सिस्टम हैक कर देंगे,उत्तेजित जातिगत गानों पर रील नहीं बनवा रहा है बल्कि पहली बार कोई ये बोल रहा है ऐसा सिस्टम बनाना है की बाहर रहने वाले बिहार के लोगों को वापस बिहार उनके घर लाना है,फैक्ट्री लगाना है आख़िर बिहार के लोगों में टैलेंट का कमी है क्या,आईएएस से लेकर लेबर इंडस्ट्री तक हर जगह जिसका बोलबाला हो उसके ख़ुद के राज्य में रोज़गार का साधन ना हो तो ये क़तई एक्सेप्टेबल नहीं होना चाहिए
प्रशांत किशोर पांडेय सिर्फ़ नाम नहीं है बल्कि करोड़ों बिहार के लोगों के लिये एक धधकते हुए सुर्ख़ सूरज की लाल किरण है जो एक आम बिहारी के जीवन की सारी समस्याओं को जड़ से जला सकती है लेकिन मौजूदा परिदृश्य में जाति पाति से ऊपर उठकर क्या बिहार वोट करेगा ?
सुनिए
मौक़ा दीजिए
जो आदमी दस साल विश्व स्तर पर यूनाइटेड नेशंस में काम करके आया हो,जिसने नरेंद्र मोदी,ममता बनर्जी समेत दर्जनों बड़े नेताओं की सफल चुनावी रणनीतियाँ बनायी हो उसकी ज़मीनी समझ कितनी गहरी और बेहतरीन होगी इसका आँकलन कीजिए ना की अपनी जाति पाति के चक्कर में उलझकर अपनी आने वाली जनरेशंस की बर्बादी का मंच तैयार करने दीजिए
✍️- वैभव चतुर्वेदी